Nitish kumar biography in hindi |
Nitish kumar biography in hindi
गंगा नदी के किनारे बसा एक छोटा सा शहर बख्तियारपुर में नीतीश कुमार अपने पिताजी के साथ रहते थे। पाँच बच्चों का भरा पूरा परिवार जिसमें तीन बेटियां उषा, प्रभा, इंदु और दो बेटे सतीष और नीतीश है। वैद्य रामलखन सिंह मुख्य रूप से हरनौत के कल्याणबिघा के रहने वाले हैं। वे बख्तियारपुर में रहकर इसी घर में आयुर्वेद दवाओं से मरीज का ईलाज करते थे। इसलिए लोग उन्हें वैद्यजी कहकर पुकारते थे। उस समय उनके पास आमदनी का यही एक साधन था। हालाँकि उनके गाँव कल्याणबिघा में 16 बिघा के करीब खेती योग जमीन है जिसका देख रेख सीताराम करते थे। जो बचपन से ही वैद्य जी के यहाँ काम करते थे। बख्तियारपुर में वैद्य जी का भरा पूरा सम्मानित परिवार था।
नीतीश कुमार के पिता रामलखन सिंह क्या थे
वैद्यजी उपचार के अलावे राजनीतीक भी करते थे। वे कांग्रेस के कार्यकर्ता भी रह चुके हैं। और एक स्वतंत्रता सेनानी भी है। अंग्रेजो के शासन काल में वे कई बार जेल भी जा चुके हैं। 1951 के विधानसभा चुनाव में वे कांग्रेस से टिकट मिलने की आस लगाए थे लेकिन कांग्रेस ने एक बाहरी व्यक्ति लालबहादुर शास्त्री की बहन सुंदरी देवी को टिकट दे दिया था। हालांकि उस समय के राजनितिक जानकार ने कहा था कि रामलखन सिंह काँग्रेस के एक साधारण सा कार्यकर्ता थे। उन्हें टिकट दिए जाने का कोई मतलब ही नहीं था। 1957 के चुनाव में जब दूसरी बार सुंदरी देवी को ही टिकट दिया जाता है तो नाराज राम लखन सिंह काँग्रेस छोड़कर नव गठित समाजवादी गुट के साथ मिलकर बाढ़ निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव हार जाते हैं। लेकिन बख्तियारपुर से एक निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन देकर सुंदरी देवी को हराने में कामयाब हो जाते हैं।
नीतीश कुमार का पिता का नाम क्या है
उस समय नितीश कुमार लगभग छः-सात साल के थे। बच्चों की परवरिस और घर की जिम्मेदारियों के लिए रामलखन सिंह पुनः वैद्य की गद्दी पर बैठ गए। दवाओं और मरीजो के उपचार से फ़ीस के रूप में कभी दस तो कभी 15 रूपये तक अर्जित हो जाता था। गद्दी पर बैठे बैठे राजनितिक चर्चा भी अक्सर हो जाया करता था। राजनितिक में दिलचस्पी रखने वाले लोग खाली समय में अक्सर वैद्यजी के साथ बैठकर चर्चा करते रहते थे। धीरे धीरे यह आयुर्वेद चिकित्सा केन्द्र राजनितिक का अड्डा बनते जा रहा था। जिसका असर उनके कामकाज पर भी पड़ने लगा था। इसलिए उन्होंने राजनितिक से सन्यास लेना ही उचित समझा। लेकिन लोगों से बातचीत और गपशप के बीच राजनितिक चर्चा निकल ही जाता था। वैद्यजी अक्सर नेहरू को कोषते हुए बोलते थे "वह चीन के बहकावे में आ गया है देश को इसकी कीमत चुकाना पड़ेगा" इन्ही सब सब चर्चाओं का बिच समय बीत रहा था।
Nitish kumar cast
मिडिल स्कूल में पहुँचने के कुछ समय बाद नितीश कुमार एक जेबी डायरी रखना शुरू कर देते हैं। जिसमे वे कुछ खास बातें लिखना शुरू कर देते हैं। जो वे अपने पिताजी और लोगो के बीच हो रहे बातचीत में सुनते थे। उनमें से एक नाम था राम मनोहर लोहिया का जिसके बारे में उन्होंने सुना था। कि वह व्यक्ति चीन के विषय में हाँथ धोकर नेहरू के पीछे पड़ गया है और कांग्रेस के मुकाबले में एक राजनिति पार्टी खड़ा कर रहा है। और तभी से नितीश कुमार राममनोहर लोहिया के विचारधारा से प्रभावित हो गए थे।
नीतीश कुमार का परिवार
नितीश कुमार बख्तियारपुर के गणेश हाई स्कूल के शिक्षक आनंदी प्रसाद और रामजी चौधरी के चहेते थे। स्कुल से लौटने के बाद नितीश कुमार अब वैद्यजी के काम में हाथ बंटाने लगे थे। वो दवाओं का पुड़िया इस तरह से बांधते थे कि हाँथ से छूटकर गिरने के बाद भी पुड़िया नहीं खुलता था। जिसका जिक्र आज भी नीतीश कुमार अपने भाषणों में करते हैं। शाम होते ही नितीश कुमार लालटेन जलाकर ऊपर अपने कमरे में पढ़ने चले जाते थे। और देर रात तक लिखते रहते थे। उन्हें बचपन से ही पत्रिका पढ़ने और लिखने का बहुत शौक था। जिसकी बदौलत उस समय नितीश कुमार को स्कूल में छात्रवृत्ति मिल जाता है और वे आगे की पढ़ाई करने पटना चले जाते हैं।
नीतीश कुमार बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग
पटना में नीतीश कुमार का दाखिला बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के इलेक्ट्रिकल शाखा में हो जाता है। कुछ समय बाद नितीश कुमार बिहार अभियंत्रण महाविद्यालय छात्र संघ अर्थात BMSU का अध्यक्ष चुन लिए जाते हैं। उनके घनिष्ठ मित्र सुरेश शेखर, अरुण सिन्हा और नरेंद्र सिंह ने उनके चयन के लिए जोरदार प्रचार किया था। कैम्पस में कांग्रेस विरोधी माहौल छाया हुआ था। नितीश कुमार ने कदमकुआं स्थित एक गाँधीवादी मिशन महिला चरखा समिति में छात्र शिष्टमंडलों के साथ जाना शुरू कर दिया था। जहाँ उन्हें दिशा निर्देश मिलता था कि आंदोलन किस दिशा में ले जाना है। जयप्रकाश नारायण का निवास स्थान भी उस समय वही था।
1972 छात्र आंदोलन नितीश कुमार लालू यादव
1972 में नीतीश कुमार ने हॉस्टल तथा वाचनालय की घटिया सुविधा के विरोध में रोषपूर्ण और लगभग हिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया था। उन्होंने सरकारी बसों का अपहरण कर उसे पश्चिम पटना के VIP जगह से हाँकर ले गये थे। लेकिन बाद में उन्होंने स्वेछा से गिरफ्तारी देकर पटना जेल को भर दिया। उनकी इस हरकत के कारण सरकार में तहलका मच गया। जिसके फलस्वरूप सरकार को सुविधाओं में सुधार के लिए उच्चाधिकार समिति का गठन करना पड़ा था। लेकिन इसके बावजूद भी नीतीश कुमार को वह स्थान नहीं मिल पाया जो उस समय लालू यादव को मिल रहा था।
लालू यादव गोपालगंज फुलवारिया
लालू यादव गोपालगंज के फुलवारिया गाँव से पटना आये थे और अपने साथ हुरदंग, कमर ठोक फुलवारिया का चौपाल भी साथ लेकर आए थे। अपने हंसमुख मिजाज, चुटीले अंदाज और चतुराई के बल पर पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ PUSU का अध्यक्ष बन गए थे। नितीश कुमार अच्छा वक्ता थे लेकिन श्रोताओं को बांधे रखने की कला नहीं जानते थे। वही लालू यादव अपने असभ्य, गंवारू और लज्जाहीन बातों से श्रोताओं को सम्मोहित कर लेते थे। एक बार यूनिवर्सिटी में लालू यादव ने छात्रों के साथ लोहिया पर आयोजित एक सेमिनार में रिबन काटा और छिपकर हॉल से बाहर निकलकर छात्रों से पूछने लगे की ये लोहिया क्या चीज है हो।
लालू यादव छात्र जीवन
लालू यादव भले किसी के बारे में नहीं जानते हो लेकिन उसके बारे में बोलने की कला और भीड़ जुटाने में माहिर थे। उनका अपना एक अलग अंदाज है। वे खुद को आगे बढ़ाने के लिए कोई भी तरीका अपना लेते थे जिसके बारे में सोचने मात्र से नितीश कुमार को शर्म महसूस होता है। कैम्पस में घन्टो चुहलबाजी करने के बाद लालू चुपके से शिक्षक के कमरे में घुस जाते थे और उनसे यह बोलकर कुछ पैसे बसूल लेते थे कि उन्होंने कई दिनों से कुछ खाया नहीं है। लालू यादव यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों के साथ पान और खैनी में हिस्सा बाँटकर दोस्ती कर लिया था। खैनी की आदत नितीश कुमार को भी थी लेकिन वे अपनी आदत को लेकर तब भी उतने ही सयाने थे जितने आज है। लालू फूहड़ स्वभाव के है तो नितीश कड़े और संकोची।
लालू यादव VS नीतीश कुमार
लालू यादव अपने परिवार के पहले शिक्षित पीढ़ी है वही नीतीश कुमार से पहले उनके परिवार की तीन पीढियां शिक्षा हासिल कर चुकी हैं। मार्च 1974 के एक विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस के साथ एक हिंसक भिड़ंत के बाद लालू यादव ने अपने ही मौत की झूठी कहानी बनाकर इतनी सच्चाई के साथ स्थानीय समाचार पत्रों में छपवा दिया की उसके अगले दिन वह खबर पटना में सुर्खियों में थी की लालू मारा गया। इस बीच लालू अपने किसी रिश्तेदार के फ्लैट में छिपकर मजे से मटन पकाकर खा रहे थे।
Nitish kumar collage story
in hindi
PUSU के चुनावों में नीतीश कुमार ने लालू यादव के लिए जोरदार चुनाव प्रचार किया और इंजीनियरिंग कॉलेज के अधिकांश वोट लालू यादव को दिलवाया था। नितीश कुमार का दायरा बढ़ाने लगा था सुशील मोदी, सरयुग राय, शिवानंद तिवारी, रविशंकर प्रसाद, शम्भु श्रीवास्तव उस समय के अग्रणी छात्र नेताओं में नीतीश कुमार की पैठ होने लगी थी। लेकिन उनका अंतरंग मंडल सुरेश शेखर, अरुण सिन्हा, नगेन्द्र सिंह तक ही सिमित रहा।
Nitish kumar collage story
Patna
पटना के गाँधी मैदान के उत्तरी किनारे पर खुले आसमान के नीचे उस समय खान-पान की एक मशहूर दुकान हुआ करता था। जिसका नाम था फ्लोरा फाउंटेन जहाँ नितीश कुमार का मनपसन्द अड्डा हुआ करता था। फ्लोरा फाउंटेन यूनिवर्सिटी इलाके से कुछ ही मिनट की दुरी पर था। नितीश कुमार के पास महीने खर्च के लिए काफी रकम होता था। इसलिए वे यहाँ रिक्सा से आया करते थे। जबकि अधिकांश लोग पैदल या सायकल से आते थे। यह जगह इसलिए भी अच्छी थी क्योंकि यह पटना के दो सबसे अच्छे सिनेमा हॉल एलिफिस्टन और रीजेंट के बीच में था। नितीश कुमार खाने-पीने और सिनेमा देखने के शौकीन थे। कभी-कभी तो एक के बाद दूसरा शो भी देख लिया करते थे यदि दिलीप कुमार या देवानन्द की पिक्चर लगी हो तो, वो भी बालकनी क्लास में।
CM नितीश कुमार छात्र जीवन
राजनितिक उथल पुथल के कारण पटना में सामान्य जीवन अस्त व्यस्त रहता था। नितीश कुमार कुल मिलाकर एक अच्छा विद्यार्थी थे। लेकिन उनका ध्यान राजनितिक की तरफ कुछ ज्यादा ही जाने लगा था। इंजिनियर की डिग्री हासिल करना था और सड़कों पर संघर्ष भी करना था। नितीश कुमार के पिताजी वैद्यजी कभी नहीं चाहते थे की उनका बेटा मुन्ना राजनितिक जीवन की ओर कदम रखे। क्योकि राजनितिक की वजह से उन्हे जो अपमान का घुट पीना पड़ा है। वह मुन्ना के साथ नहीं होने देना चाहते थे। लेकिन नितीश कुमार खुद को राजनीती में कुछ ज्यादा ही डुबोने लगे थे। वे लोहिया पर लिखी हुई पुस्तकें मंगवाकर पढ़ते और उनके विचारों पर चलने का मन बना लिए थे। वे JP के मार्ग दर्शन और संरक्षण में बनी छात्र संघर्ष समिति के सदस्य बन गए थे। वे अखबारों और पत्रिकाओं में आंदोलन की खबरें लिखकर भेजते थे। उनकी लिखी खबरें को समाचार कार्यालयों में अहमियत दिया जाता था। क्योकि इन कार्यालयों में उनकी पहचान एक सभ्य और पढालिखा छात्र नेता के रूप में था। वही लालू यादव को लोग नाटक मंडली, फूहड़ और असभ्य नजरों से देखते थे। हालांकि नितीश कुमार के सभा से ज्यादा भीड़ लालू यादव के सभा में होती थी।
नीतीश कुमार बख्तियारपुर
पटना में नीतीश कुमार के इन गति विधियों के कारण बख्तियारपुर में वैद्यजी को चिन्ता सताने लगा। नितीश कुमार का बख्तियारपुर आना जाना कम हो गया था। और अखबारों में उनका नाम छात्र नेता नितीश कुमार के रूप में आने लगा था। एक-दो बार वैद्यजी जी अपने बेटे मुन्ना से मिलने पटना गये लेकिन नितीश कुमार न क्लास में मिले न होस्टल में। वे कही विरोध प्रदर्शन कर रहे होते तो कभी आंदोलन की योजना बना रहे होते। एक दिन वैद्यजी को अपने मुन्ना से मिलने की इच्छा वहाँ खिंच ले गई जहाँ नितीश कुमार यूनिवर्सिटी के अंदर एक भीड़ को संबोधित कर रहे थे। अपने मुन्ना को मंच पर बोलते थे वैद्यजी गदगद हो गए। अच्छा बोल लेता है, वक्ता बन गया है, बड़ी बड़ी बातें करने लगा है। उनके जीवन में जो कमी रह गई थी उसे उनका मुन्ना पूरा करने बाला है। एक दिन उनका मुन्ना लोगों की नजरों में छा जायेगा। लेकिन दूसरी तरफ अपनी अतीत को याद करके सोचने लगे। यदि मुन्ना के साथ मेरे जैसा हुआ तो। नहीं नहीं मैं उसके साथ ऐसा नहीं होने दूंगा। उसे इंजीनियर बनाना है अच्छी नौकरी करना करना है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पत्नी का नाम क्या है?
जिस लड़की मंजु कुमारी से नीतीश कुमार का विवाह होने बाला था। उसे वे अपने दोस्तों के कहने पर पटना के मगध महिला कॉलेज के गेट पर देख चुके थे। उनकी होने बाली पत्नी सीधी-साधी दुबली-पतली तुनक मिजाज से दूर रंग गेहुआ देखते ही नीतीश कुमार ने पसंद कर लिया था। उस समय नीतीश कुमार बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में इंजीनिर के पद पर पटना में कार्यरत थे। और शिक्षिका बनने की चाह रखने बाली मंजु कुमारी पटना के मगध महिला कॉलेज में समाजशास्त्र की छात्रा थी। लड़का इंजीनिर और शिक्षिका बनने बाली लड़की जोड़ी अच्छी बन रही थी। लेकिन नीतीश कुमार को जब पता चला की उनकी शादी के लिए दहेज में 22,000 रुपये उनके पिताजी वैधजी को दिया गया है। तब उन्होंने विवाह करने से साफ इनकार कर दिया था।
Nitish kumar Jivani
हमारे बिहार में जब लड़का-लड़की का विवाह तय किया जाता है। तो विवाह तय करने बाले उस व्यक्ति को अगुआ कहा जाता है। अगुआ को लड़का और लड़की दोनों पक्ष के द्वारा बहुत सम्मान दिया जाता है। क्योंकि अगुआ दोनों पक्ष के रिस्तेदार या पहचान बाले होते है। साथ ही एक दूसरे पक्ष की मांगों को बताने का काम वही करते है। उस समय नीतीश कुमार के विवाह में अगुआ का काम नरेंद्र सिंह कर रहे थे। नीतीश कुमार के जीवन को नया मोड़ देने बाला नरेंद्र नाम उनके जीवन में पहले ही जुड़ चुका था।
Nitish kumar History
नीतीश कुमार का विवाह उनके गाँव हरनौत के कल्याणबीघा से मात्र 1-2 किलोमीटर की दूरी पर सेवदह गाँव में कृष्णनन्दन सिन्हा की पुत्री मंजु कुमारी से तय होने बाला था। कृष्णनन्दन सिन्हा अपने गाँव सेवदह के ही सरकारी स्कूल में प्रधानाध्यापक थे। उनकी पुत्री मंजु कुमारी पटना के मगध महिला कॉलेज में पढ़ रही थी। रिस्तेदारों और नरेंद्र सिंह की मदद से विवाह का प्रस्ताव रखा गया। जब इस बारे में नीतीश कुमार से बातचीत की गई तो पहले तो उन्होंने विवाह करने से मना कर दिया था। लेकिन घर बालों ने समझाया, पिताजी बुजुर्ग हो गए थे। और बख्तियारपुर में ही मरीजों का आयुर्वेद दवाओं से इलाज करते थे, नीतीश कुमार का विवाह का उम्र भी गया था। इंजीनियर के पद पर अच्छी नौकरी थी।
Nitish kumar Wife
एक तय सीमा तक विरोध करने के बाद नीतीश कुमार विवाह के लिए राजी हो गए। घर बालों से नीतीश कुमार को लड़की के बारे में पता चला जिसे उन्होंने अपने दोस्तों को बताया। दोस्तों के कहने पर नीतीश कुमार अपने होने बाली पत्नी को देखने पटना मगध महिला कॉलेज के गेट के आस-पास खड़े हो गए और दूर से ही मंजु कुमारी को देखा, उनकी होने बाली पत्नी सीधी-साधी दुबली-पतली तुनक मिजाज से दूर रंग गेहुआ देखते ही नीतीश कुमार ने पसंद कर लिया।
Nitish kumar family
background
इधर अगुआ बने नरेंद्र सिंह ने दोनों पक्ष को एक दूसरे से बातचीत कारवाई और विवाह का दिन 22 फरवरी 1973 को तय किया गया। लड़की के पिता कृष्णनन्दन सिन्हा ने दहेज के रूप में नीतीश कुमार के पिताजी वैद जी को स्वेच्छा से 22,000 रुपये दिए। जिसे उन्होंने लेने में संकोच किया क्योंकि उन्हे मालूम था की मुन्ना इसे स्वीकार नहीं करेगा। नीतीश कुमार को घर बाले उन्हे मुन्ना कहकर बुलाते थे। नरेंद्र सिंह और होने बाले समधी कृष्णनन्दन सिन्हा ने उन्हे शगुन के रूप में रुपये लेने का आग्रह किया तो वैद जी मना नहीं कर पाए।
Nitish Kumar Manju
Sinha
अगले दिन किसी काम से नरेंद्र सिंह नीतीश कुमार से मिलने पटना गए हुए थे। तो नीतीश कुमार को किसी तरह पता चला की दहेज के रूप में उनके पिताजी को 22000 रुपये दिया गया है। तो वे आग बबूला हो गए। उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया की दहेज में दिया गया 22,000 रुपये जब तक लौटाया नहीं जाएगा तब तक मुझे नींद नहीं आएगा। मैं इस विवाह में किसी तरह का दिखावा नहीं करना चाहता हूँ और न ही कोई उपहार का लेन-देन होगा यह विवाह साधारण तरीके से रजिस्ट्रार के ऑफिस में यानि कोर्ट मैरेज होगा। यदि ऐसा नहीं होता है तो इस विवाह को रद्द समझा जाय। नीतीश कुमार इसी वक्त इस बारे में अपने पिताजी से बातचीत करना चाहते थे, लेकिन शाम हो चुका था, और बख्तियारपुर जाने बाली आखिरी रेलगाड़ी निकल चुकी थी। लेकिन नीतीश कुमार अपने जिद पर अड़े हुए थे, वे इस तरह सोच मे पड़कर पूरी रात जागना नहीं चाहते थे। उन्होंने बख्तियारपुर जाने के लिए एक त्रिपहिया वाहन रिजर्व कर लिया। नीतीश कुमार के स्वभाव से अनजान नरेंद्र सिंह संकोच में पड़ गए और बिना कुछ बोले उनके साथ वाहन में बैठकर बख्तियारपुर चल दिए। बख्तियारपुर पहुँचने पर उस समय वाहन चालक ने 100 रुपये से अधिक किराया मांगा था जिसे नीतीश कुमार ने अपने पिताजी से दिलवाया और चुपचाप सीढ़िया चढ़ते हुए ऊपर अपने कमरे में चले गए।
Nitish Kumar Father
नीतीश कुमार ने विवाह के लिए जो शर्त रखी थी वह शर्त नरेंद्र सिंह ने वैद जी को बताया। इतनी रात को इस तरह वाहन रिजर्व कर मुन्ना को अचानक घर आना, वैद जी को इस बात का अंदेशा पहले से ही हो चुका था। वे तो दहेज में मिले रुपये लौटने के लिए तैयार है लेकिन क्या लड़की बाले इस तरह कोर्ट मैरेज करने के लिए राजी होंगे। अपने मन की बात वैद जी ने नरेंद्र सिंह को बताई। अब नरेंद्र सिंह के ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गई थी। वे सोंच में पड़ गए की सेवदह जाकर वो किस तरह एक प्रधानाध्यपक को समझते की आपके होने बाले दामाद ने दहेज लेने से इनकार कर दिया है। यह बात जब गाँव बालों को पता चलेगा तो लोग क्या सोचेंगे। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं प्रधानाध्यापक कृष्णनन्दन सिन्हा को नीतीश कुमार के सिद्धांतों पर गर्व हुआ। उन्होंने कहा की हमने तो यह सोच कर यह रकम दिया था की नए जमाने का लड़का है और यह कोई बड़ी रकम तो है नहीं इसलिए मना नहीं करेगा। हमें तो गर्व है की ऐसे सोंच रखने बाले लड़के से हमारी मंजु का विवाह हो रहा है।
Nitish Kumar Bakhtiyarpur
दहेज में दिया गया रुपया लड़के बालों ने लौटा दिया यह खबर सेवदह गाँव से होते हुए आस-पास के गई गांवों मे फैल गया। चौक-चौराहे, चाय दुकान और लगभग हर सामाजिक स्थल पर दहेज का विरोध करने बाला लड़का नीतीश कुमार का चर्चा होने लगा। उड़ते उड़ते यह खबर मिडिया तक पहुँची तो उस समय उदीयमान पत्रकार जुगनू शारदेय ने “धर्मयुग” के लिए नीतीश कुमार का इंटरव्यू लिया। जिसमे नीतीश कुमार ने दहेज प्रथा के खिलाफ खुलकर आवाज उठाया और महिलाओं की वकालत करते हुए कहा की महिलाओं को घरेलू कामों में सिमट कर नहीं रहना चाहिए। महिलाओं को शिक्षित बनाना चाहिए यदि किसी परिवार में एक महिला शिक्षित है तो वह अपने बच्चों को शिक्षित बनाएगी और उसके बच्चे आने बाली पीढ़ी को शिक्षा देगा इस तरह पूरा समाज शिक्षित हो जाएगा। इस एक इंटरव्यू से नीतीश कुमार नए अवतार में आ गए और जनता से उन्हे खूब वाहवाही मिला। अब नीतीश कुमार को भी लगने लगा की उन्हे जनता के लिए कुछ करना चाहिए तब उन्होंने राजनीति में जाने का मन बना लिया।
No comments:
Post a Comment