ग्रामीणों से नोकझोक के बाद मुखिया बटोरन कुमार ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर किया झंडोतोलन History of Doma Panchayat Mukhiya Batoran Kumar
ग्रामीणों के बीच मुखिया बटोरन कुमार |
बख्तियारपुर प्रखण्ड क्षेत्र के डोमा पंचायत में जर्जर पंचायत भवन के प्रांगण
में आज स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर झंडोतोलन करने पहुँचे मुखिया बटोरन कुमार और ग्रामीणों
के बीच बहस होने लगा। ग्रामीणों ने मुखिया पर आरोप लगाते हुए कहा कि पिछली बार 26 जनवरी को जब मुखिया जी यहाँ झंडा फहराने आये थे तो उन्होंने वादा किया था कि
15 अगस्त से पहले जर्जर पंचायत भवन का निर्माण कर दिया जायेगा। लेकिन निर्माण
के नाम पर यहाँ पर एक ईंट तक नहीं लगाया गया।
पंचायत भवन डोमा
ग्रामीणों ने कहा कि कहा कि मुखिया जी अपने गाँव में ही अपने कुछ लोगों के साथ
मिलकर आम सभा का आयोजन करते हैं। यहाँ पर आज तक एक भी आम सभा का आयोजन नहीं किया गया
है। जिससे डोमा गाँव की जनता को अपनी समस्याओं को बताने का मौका ही नहीं मिलता है।
विकास की बात तो बहुत दूर की चीज है।
डोमा पंचायत
मुखिया बटोरन कुमार
वही मुखिया बटोरन कुमार के सहयोगी अरुण कुमार ने मुखिया के बचाव में कहा कि
डोमा पंचायत में अभी तक किसी योजना पर काम शुरू नहीं किया गया है। जैसे ही काम शुरू
होता है तो इसपर विचार विमर्श किया जायेगा। अब सरकार की ओर से पंचायत सरकार भवन का
निर्माण कराया जाता है जिसके लिए 50 डिसमिल जमीन होना जरुरी है। जो यहाँ उपलब्ध नहीं
है। यदि ग्रामीणों की ओर से यहाँ जमीन उपलब्ध कराया जाता है तो यहाँ पंचायत सरकार भवन
का निर्माण करा दिया जायेगा। और यदि यहाँ जमीन नहीं मिलता है तो किसी दूसरे गाँव में
जमीन उपलब्ध कराकर पंचायत सरकार भवन का निर्माण करवाया जायेगा।
मुखिया बटोरन
कुमार
झंडोतोलन के बाद मुखिया बटोरन कुमार ने ग्रामीणों को संबोधित करते हुए कहा कि
चाचा जी (अरुण कुमार) ने जो कहा है उसपर काम किया जायेगा हमारे ओर से कोई अड़चन नहीं
है।
कौन हैं मुखिया बटोरन कुमार
बख्तियारपुर प्रखण्ड अंतर्गत डोमा पंचायत के लखीपुर गाँव का निवासी बटोरन कुमार
मुखिया बनने से पहले ईंट भट्ठा पर काम करने के अलावे अरुण कुमार के यहाँ मजदूरी का
काम करते थे। उस समय इस इलाके में बटोरन कुमार की पहचान एक मजदुर के रूप में था।
मुखिया बटोरन कुमार |
अरुण कुमार भी लखीपुर के निवासी और जदयू के नेता है। अरुण कुमार की पहुँच मुख्यमंत्री
नीतीश कुमार तक है, और मुख्यमंत्री भी अरुण कुमार को अच्छी तरह से
पहचानते हैं। कॉलेज के दिनों से ही वे दोनों एक दूसरे को जानते हैं। अरुण कुमार के
पिता पूर्व में डोमा पंचायत के मुखिया रह चुके थे। इसलिए अरुण कुमार अपने पिता की कुर्सी
पर एक बार बैठना चाहते थे।
अरुण कुमार |
लंबे समय बाद जब नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बनते हैं तब बिहार में 2001 में पंचायत चुनाव कराना तय किया जाता है। डोमा पंचायत में कुल सात गाँव घनसुरपुर, लखीपुर सालिमपुर, डोमा, कलराबिगहा रामनगर और मुसहरी पड़ता है। जिसमें सालिमपुर
अधिक आबादी बाला गाँव है। इस पंचायत चुनाव में अरुण कुमार अपने पिता की गद्दी को संभालने
और मुखिया बनने के लिए 2001 के पंचायत चुनाव में कूद पड़ते हैं। उनके सामने
टक्कर देने के लिए सालिमपुर गाँव के कृष्णनंदन शर्मा थे।
बिहार पंचायत
चुनाव 2021
सालिमपुर अधिक आबादी बाला गाँव होने के कारण अरुण कुमार चुनाव हार जाते हैं।
जिसका उन्हें गहरा सदमा लगता है, खुदखुशी करने के इरादे से अरुण कुमार जहर खा लेते
हैं। उसके बाद उनके परिजन इलाज के लिए उन्हें पटना ले जाते हैं। पटना में जब इस घटना
की सूचना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लगता है तो बेतहर इलाज के लिए स्पेशल हेलीकॉप्टर
से अरुण कुमार को मुख्यमंत्री नितीश कुमार दिल्ली भेज देते हैं। दिल्ली में अरुण कुमार
का इलाज चलता है और वे ठीक हो जाते हैं। परिजनों के जिद्द के बाद अरुण कुमार फिर कभी
मुखिया का चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लेते है।
पंचायत चुनाव
आरक्षण
2001
से 2015 तक लगातार तीन बार सालिमपुर के कृष्णनंदन शर्मा डोमा पंचायत का मुखिया पद अपने पास रखते हैं। लम्बे अर्से
बाद बिहार के पंचायत चुनाव में आरक्षण लागू किया जाता है। और 2016 में डोमा पंचायत का मुखिया पद पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया जाता है। इस
चुनाव में भी सालिमपुर गाँव के ही राजू साव की माँ श्याम सुंदरी देवी की जीत होती है।
2019 के पंचायत चुनाव में अरुण कुमार के दिमाग में फिर
से मुखिया पद हासिल करने का कीड़ा घुस जाता है। लेकिन मुखिया सीट आरक्षित होने के कारण
अरुण कुमार खुद उम्मीदवार नहीं बन सकते थे। इसलिए उन्होंने अपने घर में काम करने वाले
बटोरन कुमार को उम्मीवार बनाया। और कड़ी मेहनत के बाद बटोरन कुमार चुनाव जीत जाता है।
इस तरह से ईंट भट्ठा पर काम करने वाला बटोरन कुमार डोमा पंचायत का मुखिया बन जाता है।
No comments:
Post a Comment